“चिडि़या को लाख समझाओकि पिंजड़े के बाहरधरती बहुत बड़ी है, निर्मम है,वहाँ हवा में उन्हेंअपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी।यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,पर पानी के लिए भटकना है,यहाँ कटोरी में भरा जल गटकना है।बाहर दाने का टोटा है,यहाँ चुग्गा मोटा है।बाहर बहेलिए का डर है,यहाँ निर्द्वंद्व कंठ-स्वर है।फिर भी चिडि़या मुक्ति का गाना गाएगी,मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी,पिंजरे में जितना अंग निकल सकेगा, निकालेगी,हरसूँ ज़ोर लगाएगीऔर पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी।”
“अक्सर एक व्यथायात्रा बन जाती है ।”
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